Monday, January 10, 2011

रैन बसेरों का संकट

अभावग्रस्त समाज के लिए हाड़ कपाती ठण्ड मारक साबित होती है | वास्तव में हर मौसम परिवर्तन पर ठण्ड, लू और बाढ़ से मरने वालों का जो आंकड़ा खबरों में नजर आता है, उसके मूल में गरीबी होती है | गरीब आदमी पेट तो भर लेता है, लेकिन पेट ढक नही सकता | पिछले दिनों दिल्ली में निराश्रित लोगों का रैन बसेरा उजाड़े जाने की खबरें आने के बाद सुप्रीम कोर्ट को दखल देनी पड़ी थी | विडंवना है कि आज स्वार्थ मानवता पर भरी पड़ रहा है | चंद पैसों के लालच में कुछ लोग समाज के निचले पायदान पर खड़े लोगों की छत का सहारा छिनने से भी गुरेज नही करते | एक समय था जब जनता के दुःख-दर्द को समझने वाले राजा सर्द रातों में घूम-घूमकर अपनी प्रजा का हल पूछते थे | अभावग्रस्त लोगों को गर्म कपडे बांटते थे | सार्वजनिक स्थलों पर अलाव जलाने की व्यवस्था की जाती थी | लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि लोकतान्त्रिक सरकारों में वह संवेदनशीलता नहीं पाई जाती | वातानुकूलित घरों में रहने वाले नेता फुटपाथों में रहने वालों का दर्द क्या महसूस करेंगे ? आज जब संपूर्ण भारत में तापमान में गिरावट का दौर लगातार जरी है तो रैन बसेरों कि संख्या नगण्य ही नजर आती है | राज्य सरकारें व स्थानीय निकाय इस दृष्टी से सदा से संवेदनहीन नजर आतें हैं | यही वजह है कि हजारों लोग रेलवे व बस स्टेसनों में रात गुजारतें है | वास्तव में विकास के आंकड़ें के उछाल के पीछे का काला सच इन फुटपाथों में सोये लोगों को देखकर लगाया जा सकता है | यह बतातें हैं कि देश में अमीरी-गरीबी की खाई लगातार चौड़ी होती जा रही है | यह सरकार की लोककल्यान्कारी नीतियों का यथार्थ बताती प्रतीत होती है |

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